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अभावों के बीच रह शिक्षा ग्रहण कर शिखर को छूनेवाले...पं. जी की मनाई गई पुण्यतिथि

अभावों के बीच रह शिक्षा ग्रहण कर शिखर को छूनेवाले...पं. जी की मनाई गई पुण्यतिथि  

मनेन्द्रगढ़ भाजापा मंडल  अध्यक्ष  धर्मेन्द्र पटवा के नेतृत्व में पं. दीनदयाल उपाध्याय जी की पुण्यतिथि 11 फरवरी 2021 को  मनाई गयी  एवं  उक्त पं. जी के  जीवनों में प्रकाश डाला गया  की सुविधाओं  में पलकर कोई भी सफलता पा सकता है लेकिन अभावों के बीच रहकर शिखरों को छूना बड़ा ही  कठिन है। 25 सितम्बर, 1916 को जयपुर से अजमेर मार्ग पर स्थित ग्राम धनकिया में अपने नाना पंडित चुन्नीलाल शुक्ल के घर जन्मे उक्त पंडित दीनदयाल उपाध्याय ऐसी ही विभूति थे। दीनदयाल जी के पिता श्री भगवती प्रसाद जो ग्राम नगला चन्द्रभान, जिला मथुरा, उत्तर प्रदेश के निवासी थे। तथा तीन वर्ष की अवस्था में ही उनके पिताजी का तथा आठ वर्ष की अवस्था में उनकी माताजी का देहान्त हो गया था । अतः पं. दीनदयाल जी का पालन पोषण रेलवे विभाग में कार्यरत उनके मामा द्वारा किया गया । उक्त पं. दीनदयाल कक्षा में सबसे प्रथम श्रेणी में ही वे उत्तीर्ण होते थे। जब कक्षा आठ में उन्होंने अलवर बोर्ड,मैट्रिक में अजमेर बोर्ड तथा इण्टर में पिलानी में सर्वाधिक अंक पाये थे। उक्त दौरान  14 वर्ष की आयु में पं. दीनदयाल जी के  इनके छोटे भाई शिवदयाल का देहान्त हो गया। तथा 1939 में उन्होंने सनातन धर्म कालिज, कानपुर से प्रथम श्रेणी में बी.ए. पास किया। यहीं उनका सम्पर्क उक्त संघ के उत्तर प्रदेश के प्रचारक श्री भाऊराव देवरस से हुआ। इसके बाद वे उक्त संघ की ओर खिंचते चले गये। एम.ए. करने के लिए वे आगरा आये; पर घरेलू परिस्थितियों के कारण एम.ए. पूरा नहीं कर पाये। प्रयाग से इन्होंने एल.टी की परीक्षा भी उत्तीर्ण की। एवं संघ के तृतीय वर्ष की बौद्धिक परीक्षा में भी उन्हें पूरे देश में प्रथम स्थान मिला था। अपनी मामी के आग्रह पर उन्होंने प्रशासनिक सेवा की परीक्षा दी। उसमें भी वे प्रथम रहे; पर तब तक वे नौकरी और गृहस्थी के बन्धन से मुक्त रहकर संघ को सर्वस्व समर्पण करने का मन बना चुके थे। इससे इनका पालन-पोषण करने वाले मामा जी को बहुत कष्ट हुआ। इस पर पं.दीनदयाल जी ने उन्हें एक पत्र लिखकर क्षमा माँगी। उक्त पत्र का महत्त्व बड़ा ऐतिहासिक है। वर्ष 1942 से उनका प्रचारक जीवन गोला गोकर्णनाथ (लखीमपुर, उ.प्र.) से प्रारम्भ हुआ। तथा वर्ष 1947 में वे उत्तर प्रदेश के सहप्रान्त प्रचारक बनाये गये। एवं वर्ष 1951 में डॉ.श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने नेहरू जी की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीतियों के विरोध में केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल छोड़ दिया। वे राष्ट्रीय विचारों वाले एक नये राजनीतिक दल का गठन करना चाहते थे। उन्होंने संघ के तत्कालीन सरसंघचालक श्री गुरुजी से सम्पर्क किया। गुरुजी ने दीनदयाल जी को उनका सहयोग करने को कहा। इस प्रकार 'भारतीय जनसंघ' की स्थापना हुई। दीनदयाल जी प्रारम्भ में उसके संगठन मन्त्री और फिर महामन्त्री बनाये गये। वर्ष 1953 के कश्मीर सत्याग्रह में डॉ. मुखर्जी की रहस्यपूर्ण परिस्थितियों में मृत्यु के पश्चात्  जनसंघ की पूरी जिम्मेदारी उक्त पं. दीनदयाल जी पर ही आ गयी। वे एक कुशल संगठक, वक्ता, लेखक, पत्रकार और चिन्तक भी थे। लखनऊ में राष्ट्रधर्म प्रकाशन की स्थापना उन्होंने ही की थी। एकात्म मानववाद के नाम से उन्होंने नया आर्थिक एवं सामाजिक चिन्तन दिया, जो साम्यवाद और पूँजीवाद की विसंगतियों से ऊपर उठकर देश को सही दिशा दिखाने में सक्षम है। उनके नेतृत्व में जनसंघ नित नये क्षेत्रों में पैर जमाने लगा। वर्ष 1967 में कालीकट अधिवेशन में वे सर्वसम्मति से अध्यक्ष बनाये गये। इस तरह चारों ओर जनसंघ और पंडित दीनदयाल जी के नाम की बड़ी  धूम मच गयी। यह देखकर विरोधियों का सीना फटने लगा । वही पं. दीनदयाल जी 11 फरवरी, 1968 को लखनऊ से पटना जा रहे थे। की उक्त दौरान रास्ते में ही  किसी ने उनकी हत्या कर मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर लाश नीचे फेंक दी। इस प्रकार अत्यन्त रहस्यपूर्ण परिस्थिति में एक मनीषी का निधन हो गया। भाजापा  मंडल अध्यक्ष धर्मेन्द्र पटवा ने कहा पं. दीनदयाल जी कभी भूले नही भुलायेंगे और न  ही उन्हें कभी भूला जायेगा | उक्त  पुण्यतिथि पर भाजापा  के पदाधिकारी  व कार्यकर्ता उपस्थित रहे |


  • किशन शाह -सहायक ब्यूरो चीफ  की रिपोर्ट 


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