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300 से अधिक प्रजातियों की औषधियां छत्तीसगढ़ में... इनके संरक्षण की दिशा में विशेष प्रयास की हैं आवश्यकता- उपाध्याय ||Chhattisgarh Lions||

300 से अधिक प्रजातियों की औषधियां छत्तीसगढ़ में... इनके संरक्षण की दिशा में विशेष प्रयास की हैं आवश्यकता- उपाध्याय ||Chhattisgarh Lions||

छत्तीसगढ़ एक हर्बल स्टेट के रूप में जाना जाता है यहां विभिन्न प्रकार के दुर्लभ औषधि पौधों के पाए जाने की प्रबल संभावनाएं हैं किंतु वर्तमान प्रदेश में वनों के कटाव के कारण दिनों दिन इनकी उपलब्धता अपेक्षाकृत कम होती जा रही है ,एवंऔषधीय पौधे विलुप्त होते जा रहे हैं। उक्त आशय के विचार राष्ट्रीय हरित वाणी के जिला समन्वयक एवं पर्यावरणविद् सतीश उपाध्याय ने छत्तीसगढ़ के संदर्भ में व्यक्त किया है। श्री उपाध्याय ने बताया कि विगत 2 वर्ष पहले सेंट्रल यूनिवर्सिटी के वनस्पति विज्ञान विभाग बिलासपुर द्वारा दुर्लभ औषधीय प्रजातियों से संबंधित शोध कार्य किया गया था। इसके अंतर्गत बिलासपुर क्षेत्र के विभिन्न स्थानों से अनेक औषधीय पौधों का संग्रहण किया गया था और इन सभी पौधों की पहचान कर उनका नामकरण भी किया गया था ।इससे पता चला था कि छत्तीसगढ़ में 300 से अधिक औषधि महत्व की पादप प्रजातियां मौजूद हैं। इस शोध कार्य से यह निष्कर्ष भी निकला था कि बिलासपुर जिले के उत्तरी भाग पेंड्रा मरवाही, गौरेला ,केंदा केवची में औषधि पौधों का घनत्व काफी अधिक है, जबकि दक्षिणी भाग में औषधि पौधों का घनत्व अपेक्षाकृत कम पाया गया। सेंट्रल यूनिवर्सिटी के वनस्पति विज्ञान विभाग द्वारा किए गए शोध कार्य के संबंध में श्री उपाध्याय ने बताया कि शोध के दौरान यह देखा गया कि लोगों को इन औषधीय महत्व के पौधों की पहचान और जानकारी ना होने के कारण इन दुर्लभ जड़ी बूटियों एवं औषधि पौधों को सामान्यतः ग्रामीण खरपतवार समझकर फेंक देते हैं। छत्तीसगढ़ की ज्यादातर लोग औषधीय पौधों की पहचान ना कर पाने के कारण इसके औषधीय गुणों से अनभिज्ञ है। पर्यावरण एवं पुरातत्व क्षेत्र में रुचि रखने वाले योगाचार्य श्री उपाध्याय ने जानकारी दी कि- दो वर्ष पहले समाचार पत्रों में इस आशय का समाचार प्रकाशित हुआ था कि वनस्पति विज्ञान विभाग द्वारा एक सरल और विशेष सॉफ्टवेयर तैयार किया जा रहा है इससे पौधे और उसके गुणों की पहचान हो सकेगी। हो सकता है अब इससे विकसित सॉफ्टवेयर कर लिया गया हो।गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी के वनस्पति विज्ञान विभाग द्वारा बिलासपुर क्षेत्र में पाए जाने वाले विशेष दुर्लभ औषधीय वनस्पति की विविधता पर खोज प्रारंभ की गई थी कि तब इस शोध से यह जानकारी मिली थी कि’, यहां विभिन्न प्रकार के दुर्लभ औषधीय पौधों के पाए जाने की प्रबल संभावनाएं हैं इसीलिए छत्तीसगढ़ को हर्बल स्टेट भी कहा जाता है ।छत्तीसगढ़ के विभिन्न दुर्लभ दुरूह ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी पारंपरिक वैद्यो द्वारा इन औषधि पौधों का विभिन्न रोग उपचार में प्रयोग किया जाता है। छत्तीसगढ़ में कई ऐसी वनस्पतियां हैं जिनका प्रयोग कई ऐसे असाध्य रोगों के उपचार में किया जाता है जिनका इलाज वर्तमान की आधुनिक चिकित्सा पद्धति के द्वारा संभव नहीं है । छत्तीसगढ़ में औषधीय पौधों के संरक्षण एवं रोपण की आवश्यकता बताते हुए श्री उपाध्याय ने यह मांग किया है कि छत्तीसगढ़ में औषधीय पौधों के संरक्षण और संवर्धन के क्षेत्र में तेजी लाई जाए। वनस्पति विज्ञान विभाग जो सेंट्रल यूनिवर्सिटी के अंतर्गत है यहां कई कृषि वैज्ञानिकों ने औषधीय पौधों पर शोध कार्य शुरू किया था एवं यह दुर्लभ औषधि प्रजातियों की विविधता पर सॉफ्टवेयर भी तैयार किया था । जरूरी इस बात की है कि वे अपने शोध कार्यों को जनहित में प्रसारित करें एवं 300 से अधिक औषधि पौधों की कौन-कौन सी प्रजातियां हैं यह भी जनसमुदाय को अवगत करावे। औषधीय पौधों का आणविक स्तर पर भी शोध किया जा रहा है यदि समय रहते छत्तीसगढ़ के औषधि पौधों पर इनके संरक्षण पर कार्य नहीं किया गया तो बहुत जल्दी ही छत्तीसगढ़ से कई औषधियां और पादप प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी। श्री उपाध्याय ने बताया कि-रामानुजगंज मैं एक उन्नत कृषक द्वारा 50 डिसमिल में 150 प्रकार के औषधि एवं फल फूल के पौधे तैयार किया गया है। यहां कई प्रकार के औषधीय पौधों के लिए जलवायु है मिट्टी है एवं नमी है। जरूरत है कृषि विज्ञान केंद्र एवं कृषि विज्ञान के शोधार्थी द्वारा औषधि पौधों के संरक्षण की दिशा में निरंतरकार्य किया जाए तो निश्चित रूप से छत्तीसगढ़,एक दिन हर्बल स्टेट के मामले में पूरे देश में विशिष्ट स्थान मे होगा। 

  • यीशै दास जिला ब्यूरो चीफ कोरिया की रिपोर्ट 


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